कर्नाटक के पास बसा गोकर्ण एक पवित्र धार्मिक क्षेत्र है. इस पावन धार्मिक स्थल से लोगों की गहरी आस्थाएं जुड़ी हैं. इसके साथ ही यहां का रमणिय वातावरण खूबसूरत समुद्रीय किनारे सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. कर्नाटक का छोटा सा स्थल गोकर्ण अपने ऐतिहासिक मंदिरों के लिए बहुत प्रसिद्ध है. गोकर्ण का अर्थ गाय के कान को दर्शाता है.
मान्यता है की शिवजी का जन्म गाय के कान से हुआ जिस कारण लोग इस स्थल को गोकर्ण के नाम से पुकारते हैं. इसी के साथ एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि नदियों के संगम पर बसे इस गांव का आकार भी एक कान जैसा ही प्रतीत होता है. यहां अनेक खूबसूरत मंदिर हैं जो लोगों की आस्था का केन्द्र बने हैं यहां दो महत्वपूर्ण नदियों गंगावली और अघनाशिनी का संगम भी देखने को मिलता है.
गोकर्ण पौराणिक कथा ।
गोकर्ण में स्थित महाबलेश्वर मंदिर इस जगह का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है. भगवान शिव जी का यह मंदिर पश्चिमी घाट पर बसा है तथा कर्नाटक के सात मुख्य मुक्तिस्थलों में से एक माना जाता है. इस स्थल के बारे में एक मान्यता प्रचलित है कि रावण जो भगवान शिव जी का परम भक्त था.
एक बार रावण ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया इस तप से प्रसन्न हो शिव ने रावण को वर मांगने को कहा और वरदान स्वरूप रावण ने शिव जी से अत्मलिंग की मांग रखी इस पर भगवान शिव ने उसे वह शिवलिंग दे दिया परंतु साथ ही एक निर्देश देते हुए कहा की यदि वह इस शिवलिंग को जहां भी जमीन मे रखेगा यह वहीं स्थापित हो जाएगा हटाने पर भी नहीं हटेगा अत: इसे जमीन पर मत रखना.
रावण अत्मलिंग को हाथ में लेकर लंका के लिए निकल पड़ा. इस लिंग के प्राप्ति से रावण और भी ज्यादा ताकतवर एवं अमर हो सकता था. नारद मुनी को इस बात का पता चलते ही उन्होंने भगवान गणेश से इस दुविधा को हल करने की मदद मांगी इस पर भगवान गणेश को एक तरकीब सूझी जिसके तहत उन्होंने सूर्य को ढँक कर संध्या का भ्रम निर्मित किया. रावण जो नियमित रूप से सांध्य पूजा किया करता था इस शिवलिंग के कारण धर्म संकट में पड़ गया.
इस बीच गणेश जी ब्राह्मण के वेश में वहां प्रकट हुए रावण ने उस ब्राह्मण स्वरुप गणेश जी से आग्रह किया कि वह उस अत्मलिंग को कुछ समय के लिए पकड़ ले ताकि वह पूजा कर सके गणेश भगवान को इसी बात का इंतजार था.
अत: उन्होंने शिवलिंग को ले लिया परंतु रावण के समक्ष यह बात रखी कि यदि उसे देर होती है तो वह आवश्यकता पड़ने पर तीन बार ही रावण को पुकारेगा और यदि वह नही आया तो फ़िर उस लिंग को धरती पर रख देगा रावण ने बात मान ली व पूजा करने लगा रावण के पूजा में लगने पर ही गणेश जी ने उस लिंग को वहीं भूमि पर जो गोकर्ण क्षेत्र था रख दिया.
और अंतर्ध्यान हो गए तमाम कोशिशें करने के बावजूद रावण इसे निकाल नहीं पाया तभी से यहां भगवान शिव का वास माना जाता है और यह स्थल गोकर्ण एक धार्मिक स्थल के रूप में महत्वपूर्ण हो गया.
गोकर्ण मुख्य मंदिर |
गोकर्ण में कई मंदिर हैं यहां का मुरुदेश्वर मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है. इसके साथ ही महा गणपति मंदिर है भी है जो भगवान गणेश को समर्पित है गणेश जी ने ही यहां शिवलिंग की स्थापना करवाई थी अत: उनके नाम पर इस मंदिर का निर्माण हुआ. इसके अलावा दूसरे अहम मंदिर जैसे भद्रकाली मंदिर , उमा महेश्वरी मंदिर, वरदराज मंदिर , ताम्रगौरी मंदिर सेजेश्वर , गुणवंतेश्वर और धारेश्वर मंदिर भी स्थापित हैं.
इस स्थल को पचं महाक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. यहाँ के मंदिरों की बनावट, शिल्प कला बहुत ही सुंदर प्रतीत होती है जिनमे चालुक्य एवं कदम्ब शैलियों का मिश्रित प्रभाव भी देखने को मिलता है़. मन्दिर के अन्दर के शिल्प और कलात्मकता लुभावनी है.

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