Announcement:

This is a Testing Annocement. I don't have Much to Say. This is a Place for a Short Product Annocement

Tuesday, 4 September 2012

                    डीआरडीओः आत्मनिर्भरता की ओर




रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) ने एक ओर कठिन परिस्थितियों में देश की रक्षा में जुटे सैनिकों के लिए कई नायाब प्रणालियों का विकास किया है, वहां रक्षा प्रणालियों में से कई के विकास में भारी देरी के कारण आलोचना का शिकार भी हुआ।

डीआरडीओ ने जवानों के लिए कुछ बहुत ही उपयोगी सामग्री तैयार की है जिनमें पानी में जहर परख किट, पोर्टेबल अशुद्धिनाशक सामग्री, न्यूक्रियर, बायोलॉजिकल और केमिकल हमले से बचाव के फिल्टर, टाइटेनियम स्पंज, एनबीसी सुरक्षा वस्त्र, धमाके और बुलेट से सुरक्षा वाले जैकेट, बर्फ में आक्सिजन की कमी से बीमार सैनिक को बचाने वाले यंत्र, ठंड से बचाव के दस्ताने आदि शामिल हैं। लेकिन हथियार और जटिल प्रणालियों के विकास में डीआरडीओ ने काफी देरी की है। यही कारण है कि आज भी भारत को 70 फीसदी रक्षा सामग्री विदेशों से खरीदनी पड़ती हैं। इसके लिए डीआरडीओ को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
डीआरडीओ प्रोजेक्ट में देरी और लागत में बेतहाशा वृद्धि को परखने के लिए सरकार ने 2006 में पी.रामाराव की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय कमेटी गठित की थी जिसकी रिपोर्ट 2008 में दे दी गई। इसमें की गई कई सिफारिशों को अब लागू किया जा रहा है ताकि डीआरडीओ उन्हीं परियोजनाओं में हाथ डाले जो उसके लिए बहुत जरूरी हों।
रक्षा मंत्री ए.के.एंटनी चाहते हैं कि अब देश में 70 फीसदी हथियार प्रणालियां विकसित हों और 30 फीदसी बाहर से आए। डीआरडीओ की 52 रक्षा प्रयोगशालाओं में करीब 29 हजार वैज्ञानिक और कर्मचारी काम करते हैं। इसका सालाना बजट करीब नौ हजार करोड़ रुपये का है।

डीआरडीओ के कुछ महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट 
अरिहंत परमाणु पनडुब्बी ( दो और निर्माणाधीन)
ब्रह्मोस मिसाइल (रूस के सयहोग से)
तेजस लड़ाकू विमान (वायुसेना और नौसेना के लिए)
अर्जुन टैंक    
मिसाइलें (अग्नि-3, अग्नि-2, अग्नि-1, पृथ्वी-1,2 और तीन
धनुष
सतह से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइलें
मिसाइल रोधी सुरक्षा प्रणाली
इनसास राइफलें
पिनाका मल्टी बैरल राकेट लांचर
विकास के अंतिम चरण में
टैंक भेदी नाग मिसाइल
अग्नि-5 (पांच हजार कि.मी. रेंज)
के-15 पनडुब्बी से दागी जाने वाली परमाणु बम से लैस मिसाइल
शौर्य मिसाइल
रुस्तम यूएवी
लेजर डेजलर
हम्सा, उशुस सोनार प्रणालियां आदि।

जिन प्रमुख परियोजनाओं में देरी हुई तेजस (एलसीए) लड़ाकू विमान
अर्जुन टैंक
स्वदेशी अवाक्स
अग्नि-5
परमाणु पनडुब्बियों का निर्माण
लड़ाकू विमानों के लिए कावेरी इंजन
लागत में बेहतहाशा वृद्धि
अजरुन टैंक : 1974 की परियोजना की तब लागत 15.50 करोड़ रु., अब लागत करीब 400 करोड़ रु.
तेजस : 1983 में शुरू, अनुमानित लागत 560 करोड़ रु., अब लागत करीब 8 हजार करोड़ रु.
त्रिशुल मिसाइल (करीब 3000 करोड़ खर्च, 2008 में परियोजना बंद)
कावेरी इंजन (1989री  में शुरू मूल परियोजना लागत 382 करोड़, कुल लागत 2839)


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